Add To collaction

गया वसंत

*गया वसंत*

गया वसंत कंत नहिं आए,
अब बारी है पतझर की।
मन उदास मत करो राधिके!
धीरज उर में रख कर देखो।
   होगी पुनरावृत्ति प्रीति सँग-तेरे भी नटवर की।।
आना-जाना लगा ही रहता,
इसकी क्या चिंता करना?
वर्तमान तो बदलेगा ही,
इसकी यही नियति है।
    आने वाले कल में देखना-झलक मिलेगी प्रियवर की।।
चलो डगर पर, क़दम न गिनना,
होवे भले थकन  भी।
मंज़िल हाथ पसारे बढ़ती,
लेकर आस  मिलन की।
   होगी मुदित मंजुला मंज़िल-निरखि के छवि दिलवर की।।
पथिक प्रगति-पथ पर जब चलता,
नहीं पता उसको लगता।
उसका स्वागत करेगी शीतल,
पवन या अंधड़ की बेला।
  मंज़िल पाकर मिलती राहत-जैसे छाया तरुवर की।।
डगमग नाव खेवैया अनगढ़,
पार नहीं लग पाओगे।
पर सह लहर-थपेड़ों को,
तुम साहिल पे लग जाओगे।
  राह सिखाती स्वयं चाल-गति-अपने राही रहबर की।।
होगी मुदित मंजुला मंज़िल-निरखि के छवि दिलवर की।।
  टूटी आस तो टूटोगे तुम,
  आशा-दीप जलाये रखना।
  छाए बहु अँधियारा फिर भी,
  यात्रा-पथ पर चलते रहना।
निश्चित आभा उजियारे की-देगी राहत जीवन भर की।।
होगी मुदित मंजुला मंज़िल-निरखि के छवि दिलवर की।।
                         ©डॉ. हरि नाथ मिश्र
                             9919446372

   15
2 Comments

Wahhhh बहुत ही खूबसूरत रचना

Reply

Muskan khan

26-Feb-2023 09:32 PM

Nice

Reply